(1) नाम – कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?
उत्तर – कवि गुरु नानक कहते हैं कि राम – नाम कीर्तन की एकमात्र सुकर्म है और सारे कर्म व्यर्थ है। डंड कमंडल, चोटी और जनेऊ धारण करने तथा विभिन्न तीर्थों का भ्रमण करने से जीवन में शांति नहीं मिल सकती। राम – नाम तथा भजन के बिना यह सारे कर्म व्यर्थ है। राम – नाम का कीर्तन ही शांति प्रदान कर सकता है और यही कर्म सार्थक कर्म है।
(2) प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युद्ध में धर्म साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?
उत्तर – गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम कीर्तन की एकमात्र सुकर्म है। वे दंड कमंडल चोटी और जनेऊ धारण करना साधना के नाम पर दिखावापन मानते हैं। विभिन्न तीर्थों का भ्रमण करने से न तो जीवन में शांति मिलती है और न ही मन स्थिरता मिलती है। अतः ये सब धर्म साधना के नाम पर आडंबरमात्र है।
(3) वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर – राम – नाम के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। राम – नाम के बिना हम विष खाते हैं तथा राम नाम के उच्चारण के बिना बिष बोलने लगते हैं। इस प्रकार वाणी विष के समान हो जाती है।
(4) हरिरस से कवि का कवि अभिप्राय क्या है ?
उत्तर – हरिरस से कवि का तात्पर्य राम – नाम – कीर्तन से प्राप्त होनेवाला आनंद है। भले ही किसी को गुरु का अनुग्रह प्राप्त हुआ हो, पर भगवान की नाम – महिमा के गायन से प्राप्त होनेवाला आनंद जो भक्त गुरु नानक के ही भाग्य में है।
(5) कवि ने माली – मालिन किन्हें और क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि ने कृष्ण और राधा को माली – मालिन कहा है। माली – मालिन के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि माली – मालिन के युग्म प्रयास से जिस तरह वाटिका रंगों और सुगंधों से जीवंत और चिन्ताकर्षक बनी रहती है, उसी तरह श्रीराधिका और श्रीकृष्ण (नँदनंद) की लीलाओं से प्रेमरूपी वाटिका को जीवंतता प्राप्त होती रहती है।
(6) कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि ने कृष्ण को चोर के रूप में प्रस्तुत किया है। कृष्ण अपने अपरूप सौंदर्य में बाँधकर गोपियों के चिन्त को हरण कर लेते हैं। दूसरों के चिन्त (मन) को अपने वश में करने के कारण ही कृष्ण को चोर कहा है।
(7) कवि घनानंद के अनुसार प्रेम मार्ग की विशेषता क्या है?
उत्तर – कवि घनानंद के अनुसार प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा है, इसमें टेढ़ापन नहीं होता। इसमें चतुराई का नामोनिशान नहीं होता। यह सत्य का मार्ग है। प्रेम का मार्ग एकनिष्ठता का मार्ग होता है ।
(8) कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती है ?
उत्तर – कवि कहता है कि भारत में कहीं भी भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती, है क्योंकि सारे भारतीयों ने पाश्चात्य के अंधानुकरण को अपना लक्ष्य बना लिया है। उनके आचरण में विदेशी प्रवाह को साफ देखा जा सकता है। सभी भारतवासी विदेशी वाहन, वसन, वेश, रीति और भाषा का प्रयोग कर अपने को गौरवान्वित समझते हैं। अतः सोच आचरण और चाल किसी भी स्तर पर भारत में भारतीयता के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते।
(9) स्वदेशी कविता का मूल भाव क्या है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – स्वदेशी कविता के माध्यम से कवि भारतीयों द्वारा विदेशी पढाई ही नहीं वेशभूषा, रहन-सहन खान-पान आदि पूरी तरह अपना लेने पर व्यंग्यात्मक लहजे में धिक्कारते हुए संदेश देता है कि यह आधुनिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि दास प्रवृत्ति का सूचक है।
(10) कवि स्वदेशी कविता में समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है, और क्यों ?
उत्तर – (कवि बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन) स्वदेशी शीर्षक कविता में समाज के ऐसे वर्ग की आलोचना करता हैं जो अपनी सुविधा तथा अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने अस्तित्व अपनी संस्कृति अपने देश और अपने जातीय स्वाभिमान की परवाह नहीं करता ।
(11) नेताओं के बारे में कभी प्रेमघन की क्या राय है ?
उत्तर – नेताओं के बारे में कवि प्रेमघम (बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन) की राय है कि इनसे देश के विकास के बारे में सोचना व्यर्थ है। यह स्वयं अपने को नहीं सँभाल पाते तो भला देश को कैसे सँभाल पाएंगे।