(1) मुक्ति के लिए किसे अनिवार्य माना गया है ?
उत्तर – मुक्ति के लिए गुरु शब्द यानी गुरु के उपदेश को अनिवार्य माना गया है। गुरु नानक कहते हैं कि गुरु से उपदेश से ज्ञान के चक्षु खुल जाते हैं, जिससे हमें मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति होती है ।
(2) कवि किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर – राम नाम के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है । राम नाम के बिना हम विष खाते हैं, विश्व बोलते हैं तथा हमारी बुद्धि निष्फल यहा- वहा भ्रमण करती रहती है, जिससे हम विभिन्न जंजालों में उलझकर मर जाते हैं ।
(3) राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा पद का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर – संत कवि गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। पुस्तक पढ़ने व्याकरण पर चर्चा करने संध्याकालीन उपासना करने से हमें मोक्ष नहीं प्राप्त होता। नानक कहते हैं कि गुरुवाणी के अभाव में हमें मुक्ति नहीं प्राप्त होती और राम नाम के बिना हम विभिन्न जंजालों में उलझ कर मर जाते हैं ।
(4) गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर – जिसने आशाओं और आकांक्षाओं का त्याग किया हो, जो सांसारिक मोह – ममता से मुक्त हो जो काम और क्रोध से दूर हो, उसी के घट में (शरीर में) भ्रम का निवास होता है ।
(5) गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर – संत कवि नानक कहते हैं कि जिस पर गुरुकृपा होती है, वही युक्ति यानी आशा – आकांक्षा मोह – ममता तथा काम क्रोध से मुक्त हो पाता है । युक्ति से मुक्त होने के पश्चात ही उसके घट (शरीर) में ब्रह्म का निवास होता है।
(6) नानक गोविंद में किस प्रकार लीन हुए हैं ?
उत्तर – जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एक हो जाता है, कोई भिन्नता नहीं दिखाई पड़ती उसी प्रकार नानक गोविंद में लीन हो गए हैं। उनमें और गोविंद में कोई अंतर नहीं रह गया है ।
(7) प्रेम – बरन का क्या अर्थ है ?
उत्तर – काव्यशास्त्र में प्रेम का वर्ण श्यामल माना गया है। श्री कृष्ण श्याम वर्ण के हैं, अतः कवि ने उन्हें प्रेम – वर्ण कहा है। नँदनंद (श्रीकृष्णा) प्रेम के प्रतीक हैं, क्योंकि बिना प्रेम के रंग में रँगे, सराबोर हुए प्रेम की गहराई में उतरना असंभव हो। अतः कवि ने उन्हें प्रेम बरन कहा ।
(8) मन और नँदनंद को रसखान ने किस रूप में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर – रसखान में मन को माणिक्य (मानिक) और नँदनंद को चोर के रूप में प्रस्तुत किया है । मन माणिक्य की तरह पारदर्शी तथा स्वच्छ है। गोपियों के हृदय चुराने के कारण नँदनंद को चोर कहा गया है।
(9) रसखान रचित सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत सवैये में कवि रसखान भक्त हृदय की सात्विक अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि किसी कृष्णभक्त के लिए नंद की गाय चुराने में जो आनंद है उसकी समता आठो सिद्धियों और नवों निधियों से प्राप्त सुख नहीं कर सकता है। आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भौतिक एवं अलौकिक सुख है, लेकिन नंद की गाय चराने का सुख अलौकिक तथा लोकोत्तर है, यानी उसमें असीम आनंद है। कवि रसखान असीम आनंद के आग्रही है, उन्हें लौकिक सुख से कोई लेना – देना नहीं है।
(10) नायिका (गोपीका) की कैसी विवशता है ?
उत्तर – नंदकिशोर ने नायिका का मन – माणिक्य चुरा लिया है। मन के चोरी चले जाने से नायिका (गोपीका) फेर में पड़ गई है। बेमन होने के चलते (मन के अभाव में) गोपिका का जीना मुश्किल हो गया है । यही उसकी विवशता है।
(11) कवि प्रेममार्ग को अति सूधो क्यों कहता है तथा इस पर कौन नहीं चल सकता है ?
उत्तर – कवि घनानंद कहते हैं की प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा और सरल होता है, इसमें छल कपट के लिए कोई जगह नहीं होती है। इसमें चतुराई का नामोनिशान नहीं होता। यह दुनियादारी और सांसारिकता से मुक्त होता है निश्चल और निष्कपट ह्रदयवाले ही प्रेम कर सकते हैं तथा शंकालु और कपटी लोग इस मार्ग पर नहीं चल सकते।
(12) मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम का सिद्धांत एकनिष्ठता और पूर्ण समर्पण को मानता है, लेकिन तुमने तो प्रेम का पाठ कुछ और ही पढा है। तुमने मेरे संपूर्ण प्रेम (मन) को प्राप्तकर लिया, लेकिन देने की बारी आने पर तुम्हारे दर्शन (छटाँक) भी दुर्लभ हो गए हैं।
(13) घनानंद सुजान से क्या कहते हैं ?
उत्तर – घनानंद कवि अपनी प्रेमिका सुजान से कहते हैं कि हे प्यारी ! प्रेम का सिद्धांत एक निकष्ठता और पूर्ण समर्पण को मानता है। प्रेम केवल एक से किया जाता है तथा इसमें नि: स्वार्थ भाव से, निश्छल होकर अपने को समर्पित कर देना ही प्रेम का चरमोत्कर्ष है। प्रेम के बदले कई गुना प्रेम लौटाना ही इसकी पारिपाटी है ।
(14) परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – परहित के लिए (दूसरों की भलाई के लिए) बादल देह धारण करता है। बादल जल का भंडार होता है और वह बनता ही है बरसने के लिए। बरसने के बाद उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। बादल सूखी धरती पर बरस कर उसे हरा भरा – बना देता है। ग्रीष्म से तप्त धरती को सुकून देने के लिए बादल अपने अस्तित्व को समाप्त कर लेता है।
(15) कवि अपने आँसुओं को कहाँ पहुँचाना चाहता है, और क्यों ?
उत्तर – कवि घनानंद अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहता है ताकि सुजान उसकी विरह – वेदना से परिचित हो सके और अपने दर्शन देकर उसकी वेदना को दूर कर सकें।
(16) कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि घनानंद सुजावन (बादल) से कहता है कि तुम अपने जल से मरते जीवन में प्राण का संचार करते हो। मैं विरह की मन मर्मातक पीड़ा से तड़प रहा हूँ । सुना है कि तुमने दूसरों की भलाई के लिए देह धारण की है। बिरह से तड़पते मेरे हृदय को अपने शीतल स्पर्श से छूकर तुम मेरी भी थोड़ी सी भलाई कर दो ।
(17) भारतीय वस्तुओं के तिरस्कार के फलस्वरूप कैसी स्थिति उत्पन्न हो गई ?
उत्तर – भारतीय वस्तुओं के तिरस्कार के फलस्वरुप भारत के लघु उद्योग समाप्त हो गए हैं। हस्तकलाओ को मिटा दिया गया है, जिससे कारीगर और मजदूर बेकार हो गए हैं। भारतवर्ष में गरीबी और बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
(18) कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर – कवि (प्रेमघन) नगर, बाजार और भारत की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि भारत के नगर अँगरेजी चाल में ढले हुए हैं । नगरों में बाहरी चमक-दमक और कृत्रिम सौंदर्य का बोलबाला है। सारे नगरों का देसी स्वरूप समाप्त हो गया है। बाजार में जिधर देखिए उधर केवल अँगरेजी वस्तुएँ ही दिखाई पड़ेगी। हिंदुस्तानी वस्तुएँ तो देखने में नहीं आती। भारत के बाजारों को देखकर ही इसकी (भारत की) अर्थव्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीयों पर दोहरी मार पड़ती है – लघु उद्योग धंधो और हस्तकलाओं के नष्ट होने से बेकारी की मार और इंग्लैंड से आए बने – बनाए बालों के लिए दुगुने पैसे खर्च करने की मार। अँगरेजो की इस आर्थिक नीति से भारत की अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है।
(19) कवि ने डफाली किसे कहा है, और क्यों ?
उत्तर – कभी (प्रेमघन) कहता है कि चारों वर्णों में अंग्रेजों के प्रति दास – वृत्ति का अतिशय विकास हुआ है। सभी अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए अँगरेजों की झूठी प्रशंसा और खुशामद में लगे हुए हैं। कवि ने ऐसे लोगों को डफाली की संज्ञा दी है। डबवाली डफ बजानेवाले को कहते हैं जो डफ पर कव्वाली, लावणी आदि गाकर अपना जीवन निर्वाह करता है। क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपनी भारतीयता और अस्मिता को गिरवी रखनेवाले लोग डफाली की तरह अंगरेजो का झूठा यशोगान और उनकी खुशामद करते हैं।
(20) गंगा यमुना को कवि ने किसके रूपक के रूप में प्रस्तुत किया है?
उत्तर – गंगा – यमुना को कवि ने भारत माता की दो आँखों के रुपक के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि गंगा यमुनारूपी भारतमाता की आँखों में आँसू भरे हुए हैं। गंगा जमुना मानो भारत माता की दो आँखें हैं जिनमें आँसू का जल भरा हुआ है
(21) भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है?
उत्तर – भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है, क्योंकि वह गाँवों में निवास करती है। भारत गाँवों का देश है। पर गाँवों के विकास पर किसी का ध्यान नहीं है। गाँव अपेक्षित पड़े हुए हैं। गाँव के साथ गैरों जैसा व्यवहार किया जाता है। सारा ध्यान तो नगरों पर होता है। साड़ी विकास योजनाएं नगरों के लिए ही बनती है। यह दुखद है कि अपने ही घर में कोई अपने को न पहचाने ।
(22) कवि ने भारतवासियों का कैसा चित्र खींचा है ?
उत्तर – कवि (सुमित्रानंदन पंत) ने भारतवासियों का अर्थात चित्र प्रस्तुत किया है भारतवासियों के तन पर पर्याप्त वस्त्र नहीं है वे अधनंगे हैं उन्हें कभी भरपेट भोजन नसीब नहीं होता। वे शोषित और निहत्थे है। वे मूर्ख असभ्य अशिक्षित और निर्धन है। वे असहाय और विवश है। ग्लानि और क्षोभ से उनके मस्तक झुके हुए हैं। वे निराश तथा लुटे हुए हैं। रोना उनकी नियति है। में धरती सी सहनशीलता है। वे सब कुछ सह लेते हैं, उसका प्रतिकार नहीं करते।
(23) तरुतल निवासिनी के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – तरूतल निवासिनी के माध्यम से कवि ने भारतीयों की दीन हीन स्थिति का चित्रण किया है। कवि कहता है कि भारत के निवासियों की आर्थिक स्थिति इतनी जर्जर है कि वे अपने रहने के लिए आवास का भी प्रबंध नहीं कर सकते। वे अपनी जिंदगी पेड़ो के नीचे बिताते हैं ।
(24) भारतमाता का हास भी राहुग्रस्ति क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर – शरतकालीन चंद्रमा की रजतज्योत्सन से परिपूर्ण भारतमाता (शरदिंदु हासिनी भारतमाता) का हास राहुग्रस्त है। अर्थात भारतमाता का वैभवशाली अतीत समाप्त हो चुका है आज भारतमाता देन्यजड़ित शोषित विवश असहाय निरस्त्र और बिक्षुबद्ध है। उसकी सारी समृद्धि विदेशियों ने लूट ली है। जैसे पूर्ण चंद्र को ग्रसित कर राहु उसे निस्तेज बना देता है। उसी तरह विदेशी सत्तारूपी राहुल ने शरदिंदु हासिनी भारतमाता को अपने शोषण चक्र में निस्तेज कर दिया है। आज भारतमाता के हास में अतीतकालीन वैभव का उल्लास नहीं रह गया है।
(25) भारतमाता की अर्थात स्थिति को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – भारतमाता धन – धान्या से परिपूर्ण होने के बावजूद परवश है। उसमें धरती – सी सहिष्णुता पर उसका मन कुंठित है। रोना उसकी नियति है तथा उसकी प्रसन्नता प्रतिबंधित है।