(1) कवि भारत माता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों करता है ?
उत्तर – चिंता ज्ञान का हरण कर लेती है। यहाँ गीताज्ञान से हमेशा जगमगानेवाली भारतमाता अपनी संतान (भारतवासी) के कष्ट से इतनी चिंताकुल है कि वे ज्ञान को भूलकर ज्ञानमूढ़ बन गई है। कभी कहता है कि भारत ज्ञान के क्षेत्र विश्व का सिरमौर था, पर आज यह अपनी पहचान खो चुका है। इसके निवासी दूसरे देशों के ज्ञान-विज्ञान पर आश्रित होते जा रहे हैं ।
(2) कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप – संयम क्यों सफल है ?
उत्तर – कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप – संयम सफल है, क्योंकि इसी घोर तप और संयम से तैयार उसका अहिंसारूपी अमृत के समान दूध उसकी संतान (भारतीयों) ने पी लिया है। वे मानसिक शारीरिक बौद्धिक आदि सभी रूपों से मजबूत हो गए हैं। अब वे किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
(3) कवि के अनुसार, जीवन का विकास किस कारण हुआ?
उत्तर – अहिंसा ने भारतीयों के मन से भाई और अज्ञान के अंधकार तथा विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों को दूर कर दिया है, जिससे उनके जीवन का विकास हुआ है। वे अब निडरता के साथ सभी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
(4) मंदिरों, राजप्रसादों और तहखानों में कौन रहते हैं ? कवि के अनुसार वे क्या करते हैं ?
उत्तर – मंदिरों राजप्रसादों और तहखानों मे क्रमश: धर्म के देवता, राजा और धन के देवता का निवास होता है। कवि के अनुसार वे सभ्यता – संस्कृति रक्षण – पोषण सुख – समृद्धि देने का कार्य करते हैं ।
(5) कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन है और वह कहाँ मिलेंगे ?
उत्तर – कवि दिनकर की दृष्टि में आज के देवता मंदिरों और राजप्रसादों और तहखानों में नहीं मिलेंगे। आज के देवता तो मजदूर और किसान है। ये (आज के देवता) सड़कों पर गिट्टी तोड़ते और खेत – खलिहानों में काम करते मिलेंगे। मजदूर सभ्यता की सर्जना तथा कृषक भरण – पोषण करते हैं। इसी कारण वे देवता है।
(6) जनतंत्र का जन्म नामक पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर – कवि दिनकर आपने यथार्थवादी दृष्टिकोण से एक नए मानव – मूल्य की स्थापना करते हैं। कवि ने पारंपरिक मान्यता के स्थान पर नई मान्यता को महत्व दिया है। कर्म ही पूजा है को महन्ता देते हुए वे कहते हैं कि वे मूर्ख है जो मंदिरों में धर्म के देवता राजमहलों में राजा और तहखानों में धन के देवता को ढूंढते हैं, सभ्यता – संस्कृति रक्षण – पोषण तथा सुख – समृद्धि का मूल कर्म है अतः कर्मयोगी ही देवत्व के उत्तराधिकारी हैं और वे कर्मयोगी हमे सड़को खेत खलिहानों में ही मिलेंगे ।
(7) हिरोशिमा शीर्षक कविता के आधार पर एक क्षण का उदय – अस्त का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – प्राकृतिक सूर्य पूर्व दिशा में उगता है और प्रायः बारह घंटे तक आकाश में अपनी किरने बिखेरकर संध्याकाल में अस्त हो जाता है, पर हीरोशिमा नगर के बीच मैं परमाणुबमरूपी सूर्य का उदय और अस्त एक ही साथ हुआ। आकाश से गिराया गया वह परमाणुबम क्षण भर के लिए आपने प्रज्वलित उदय से एक विनाशकारी चकाचौंध पैदा कर भीषण विध्वंस की कालिमा के साथ अस्त हो गया। यानी उस सूरज का उदय और अस्त एक ही साथ हुआ।
(8) हिरोशिमा कविता से हमें क्या सीख मिलती है ?
उत्तर – जली हुई मानव की छाया जो पत्थरों पर लिखी हुई है, हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में वर्तमान है।
(9) आशय लिखें – छायाएँ मानव जन की/नहीं मिटीं लंबी हो – हो कर ।
उत्तर – छायाएँ लंबी होकर मिटने का अर्थ है संध्या का होना। संध्यवेला में डूबते सूर्य की किरणों के स्पर्श से छायाएँ लंबी हो जाती है। पर परमाणुबमरुपी सूर्य के उदय और अस्त के एक साथ घटने के कारण प्रकृति का यह स्वाभाविक नियम विखंडित हो गया। इस सूर्य के उदित और डूबते ही सारे मानव अकाल काल कवलित हो गए हैं।
(10) छायाएँ कहाँ लिखी है ? मानवों की नियति में क्या लिखा था ?
उत्तर – मानव की छायाएँ झुलसे हुए पत्थर और उजड़ी सड़कों की गच (फर्स) पर लिखी हुई है। मानव की नियति में अकाल काल कवलित मरना होना लिखा था।
(11) कवि ने जीवन के संबंध में कैसी टिप्पणी की है ?
उत्तर – हमारी नींद कविता सतत विकासशील जीवन का चित्रण करती है। हमारी नींद में न तो हमारा विकास अवरुद्ध होता है और ना ही प्रवृत्ति का। हमारी नींद में भी जीवन की जय की कविता छंदोंवध होती रहती है।
(12) हमारी नींद से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – हमारी नींद से कभी सुविधाभोगी वर्ग की बेपरवाही का चित्रण करता है। कवि कहता है कि ऐसा नहीं है कि जब हम सोए हो तब हमारा जीवन अपनी स्वाभाविक सर्जनात्मक प्रक्रिया से विमुख रहता है। हमारी बेपरवाही में भी हमारा जीवन सतत संघर्ष करता हुआ विकासोन्मुख रहता है। हम बेफिक्र सोए रहते हैं और हमारा जीवन अपनी सर्जना प्रक्रिया में निरंतर आगे बढ़ता रहता है।
(13) इनकार करना ना भूलने वाले कौन है ?
उत्तर – इनकार करना न भूलनेवाले ऐसा वर्ग है – जो अपनी सुविधा पर ध्यान नहीं देता, उसका सारा ध्यान स्वाभिमान की सुरक्षा पर होता है। इसलिए उसमें इनकार करने का बल होता है। इस वर्ग में असीम जिजीविषा के कारण बुराई अत्याचार तथा अनेतिकता के प्रति अस्वीकार का दृढ भाव होता है। जबकि सुविधाभोगी वर्ग अपने सुख के लिए हर गलत के साथ समझौता करता है। उसमें गलत को नकारने की क्षमता नहीं होती।
(14) वीरेन डंगवाल के अनुसार नींद के दौरान क्या-क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर – कवि के अनुसार नींद के दौरान निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(क) पेड़ पौधों का बढ़ना
(ख) अंकुर का फूटना
(ग) मक्खी का जीवन क्रम (जन्म से मृत्यु की यात्रा) पूरा होना
(घ) कई शिशुओं का पैदा होना तथा उनमें से कई का विभिन्न दुर्घटनाओं में असमय मृत्यु को प्राप्त होना
(15) कवि अंकुर के माध्यम से क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि अंकुर के माध्यम से जीवन की सर्जना प्रक्रिया के निरंतर चलते रहने के शाश्वत सत्य को उद्घाटित करता है। भले ही सुविधाभोगी वर्ग अपने परिवेश की हलचल से बेपरवाह रहे । पर हठीला जीवन कोमल अंकुर के समान विपरीत परिस्थितिरूपी बीज की छत से संघर्ष करता हुआ आगे बढ़ता ही रहता है।