Hindi class 10th subjective question

Hindi class 10th subjective question
(1) लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे ? वहाँ उन्होंने क्या देखा- सुना ?
उत्तर – लेखक आविन्यों में आयोजित होने वाले रंग समारोह में निमंत्रित होने पर सम्मिलित होने गए थे।
आविन्यों मैं लेखक ने कला -केन्द्र का दिग्दर्शन क्या। आविन्यों रोन नदी के किनारे एक पुराना नगर है। यहाँ कुछ समय पहले पोप की राजधानी थी। वहाँ लेखक ने अविन्यों से कुछ दूर पत्थरों की एक खदान में रंग- समारोह की भव्य प्रस्तुति देखी। इस समारोह के दौरान वहाँ अनेक चर्च और पुराने स्थान रंगस्थलियों में बदल जाते थे। लेखक ने वहाँ समारोह की भव्य प्रस्तुति भी‌ देखी महाकाव्यात्मक । कुमार गंधर्व का गीत भी सुना था – द्रुमद्रुम लता- लता। यह सब देखकर लेखक रोमांचित हो गया।

(2) कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था ?
उत्तर – कवि ने एक वृक्ष के बहाने प्राचीन सभ्यता संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा की चर्चा की है। वृक्ष मनुष्यता पर्यावरण एवं सभ्यता की प्रहरी है। यह प्राचीन काल से मानव के लिए वरदान स्वरुप है, इसका पोशाक है रक्षक है। कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार इसलिए लगता था, क्योंकि वह हर क्षण सीना ताने दरवाजे पर तेनाव रहता था, जिस प्रकार चौकीदार घर की सुरक्षा में दरवाजे पर खड़ा रहता है।

(3) पाप्पान्ति कौन थी और वह शहर क्यों लाई गई थी ?
उत्तर – पाप्पान्ति वल्लि अम्माल की लड़की थी । वह शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए लाई गई थी क्योंकि उसे बुखार था और गाँव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर के डॉक्टर ने इसकी सलाह दी थी।

(4) सीता क्या सोचकर घर से निकल पड़ी ?
उत्तर – प्रतिमाह 50-50 रुपए देने की बात सुनकर सीता को हार्दिक पीड़ा हुई। उसने सोचा जब मुझे मजदूरी ही करनी है तो कहीं भी कर लूँगी और रोटी खा लूँगी। यही सोचकर वह घर से निकल पड़ी।

(5) देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करते हैं और क्यों ?
उत्तर – देवता वे कहलाते हैं जो कुछ नहीं करते, उनके भोग राग का प्रबंधन दूसरे लोग अपनी कीमत पर करते हैं। राजा भी इसी कोटि में गिने जाते रहते हैं। किन्तु आज जमाना बदल गया है। आज वे राजा नहीं रहे। अब तो जनतंत्र का जमाना है, जनतंत्र में जानता ही राजा होता है। शासन सूत्र का संचालन उसके ही चुने हुए प्रतिनिधि करते हैं। इसलिए कवि ने जनता को आज का देवता कहा है। क्योंकि जनता महलों राज प्रासादों और गहबरों ने नहीं खेतों खलिहानों और झोपड़िया में रहती है। इसलिए कवि उन्हें खेतों और खलियानों में सड़कों पर ढूँढने की बात करता है।

(6) गाँधीजी के अनुसार शिक्षा का जरूरी अंग क्या होना चाहिए ?
उत्तर – गाँधीजी के अनुसार शिक्षा का जरूरी अंग यह होना चाहिए कि बालक- जीवन संग्राम में प्रेम से घृणा को सत्य से और सत्य को और कष्ट सहन से हिंसा को आसानी के साथ जितना सीखे। इस सत्य के बल अनुभव करने के कारण ही गाँधीजी ने सत्याग्रह संग्राम के उत्तरार्द्ध मैं पहले टाल्सटाय फॉर्म में बाद में फिनिक्स आश्रम में बच्चों को इसी ढंग की तालीम देने की भर्षक कोशिश की थी।

(7) जाति भारतीय समाज में श्रम- विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कहीं जा सकती?
उत्तर – जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज को अपने जाल में जकड़ लिया है। जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं है क्योंकि यह व्यवस्था लोगों की रुचि पर आधारित नहीं है। एक व्यक्ति की निचली सब सन्तानें उनकी जाति और पेशे से बँध जाती है। चाहे वह सन्तानें उसे पेशे में सक्षम हो या नहीं। यह व्यवस्था विभिन्न जातियों के बीच उच्च नीच का भाव भी पैदा करती है। विपरीत परिस्थिति में भी व्यक्ति अपना व्यवसाय बदलकर दूसरा व्यवसाय नहीं कर पाता है। अतः जाति व्यवस्था श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कहीं जा सकती।

(8) लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अवदान को रेखांकित किया है ?
उत्तर – लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में भारतीय अवदान के विषय में कहा है कि भारत में ही विश्व में नीतिकथाओं के माध्यम से नवजीवन का संचार किया। इसके कारण ही विभिन्न मार्गों और साधनों के माध्यम में अनेक नीतिकथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर फैली। हमारे यहाँ प्रचलित दन्तकथाओं का प्रमुख स्रोत बौद्ध धर्म को माना जाता है।

(9) बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है ?
उत्तर – बहादुर सीधा-सादा लड़का था। उससे सबको आराम मिलता था और सबके अहं की तुष्टि होती थी। लोग उसे नाहक में मार और गाली भी देते थे तथा चोरी का इल्जाम लगाकर अपमानित भी क्या करते थे। उसके चले जाने पर सबको अपनी भूल का एहसास हुआ। इसलिए पछतावा हुआ।

(10) हमारी नींद कविता शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हमारी नींद अर्थात हमारे लापरवाही अथवा आराम पसंद जीवन आगे बढ़ाने में हमेशा बाधक बनते हैं। यह सब चीज गतिशील जीवन की गति को शिथिल करती है। लेकिन हमारा जीवन विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न करने वाली हमारी नींद की परवाह किए बगैर निरंतर आगे बढ़ता ही जाता है। प्रस्तुत कविता में हमारी नींद अगर जीवन का अवरोधक है तो जीवन भी हमारी नींद से उत्पन्न बाधा की परवाह किए बिना आगे बढ़ता है। इसलिए इस कविता का शीर्षक हमारी नींद सार्थक है।

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