Sanskrit 10th subjective question

Sanskrit 10th subjective question

(1) भारतीय समाज के उन्नयन में आर्यसमाज का क्या योगदान है ?

उत्तर – वर्तमान समय में आर्य समाज की शाखा- प्रशाखा देश और विदेशों में प्रायः सभी नगरों में विद्यमान है। सभी जगह सामाजिक एवं शिक्षा संबंधी दोषों का शोधन होता है। शिक्षा पद्धति में गुरुकुलों में डी० ए० वी० (दयानंद एंग्लोवैदिक) नाम से विद्यालयों का समूह (1883 ई० में) दयानंद की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के द्वारा प्रारंभ हुआ। वर्तमान पद्धति में समाज के सुधार प्रवर्तन में दयानंद एवं आर्य समाज का योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा।

 

(2) कर्मवीर कथा के नायक रामप्रवेश राम की प्रसिद्धि का कारण क्या है?

उत्तर – रामप्रवेश राम की अपने प्रान्त या केंद्रीय प्रशासन में अत्यधिक प्रतिष्ठा है। उनके प्रशासन क्षमता और संकट के समय में उनके निर्णायक सामर्थ्य सभी को आकर्षित करते हैं। निश्चित ही यह कर्मवीर व्यतीत बढ़ाओ को पारकर प्रशासन के केंद्र में लोकप्रिय हो गए। सत्य ही कहा गया है कि – परिश्रमी सिंह को ही लक्ष्मी की प्राप्त होती है।

 

(3) स्वामी दयानंद की शिक्षा- व्यवस्था का वर्णन करें।

उत्तर – दयानंद ने समाजसुधारकों के साथ स्त्री शिक्षा एवं विधवा विवाह का समर्थन किया तथा मूर्ति पूजा छुआछूत एवं बाल विवाह का घोर विरोध किया। इन्होंने अपने सिद्धांतों के संकलन के लिए सत्यार्थ -प्रकाश नामक ग्रंथ को राष्ट्रभाषा हिंदी में लिखकर अपने अनुयायियों का महान उपकार किया। वेदों के प्रति अनुयायियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए वेद का भाष्य संस्कृत -हिंदी दोनों भाषाओं में लिखा। दोषपूर्ण प्राचीन शिक्षा पद्धति के स्थान पर नई शिक्षा पद्धति का आरंभ किया। 1875 ई में अपने सिद्धांत के प्रचार -प्रसार हेतु मुंबई में आर्यसमाज की स्थापना करके अनुयायियों के समझ अपना उद्देश्य प्रकट किया। 

 

(4) गुरु के द्वारा शास्त्र का क्या लक्ष्य बताया गया हैं?

उत्तर – मनुष्य को जिससे सांसारिक विषयों में अनुरकित अथवा विरक्ति अथवा मानवरचित विषयों का उचित ज्ञान मिलता है, उसे धर्म शास्त्र कहा जाता है। तात्पर्य यह कि जिस शास्त्र से ग्रहणीय एवं त्याज्य अर्थात किसी आचरण को अपनाया जाए तथा किस त्याग किया जाए तथा क्या मानव- रचित है तथा क्या ईश्वर प्रदत्त है का ज्ञान प्राप्त होता है, उसे धर्म शास्त्र कहते हैं। अतः धर्मशास्त्र से हमें सत्य- असत्य की सही जानकारी मिलती है।

 

(5) आज कौन-कौन से आविष्कार विध्वंसक है?

उत्तर – आज पूरे विश्व में अशांति फैला हुआ है। इस अशांति का सामना करने के लिए सभी देश विनाशकारी अस्त्र जैसे हाइड्रोजन बम परमाणु बम आदि विध्वंसक का आविष्कार कर रहे हैं।

 

(6) संस्कार का मूल कार्य क्या है ?

उत्तर – संस्कार का मौलिक अर्थ परिमार्जन रूप और गुणाधाम रूप है।

 

(7) मंगलम पाठ के आधार पर आत्मा का स्वरूप बताएँ।

उत्तर – मंगलम पाठ मे संकलित कठोपनिषद से लिए गए मंत्र में महर्षि वेदव्यास कहते हैं की प्राणियों की आत्मा हृदयरूपी गुफा बंद है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान- से- महान है। इस आत्मा को वश में नहीं किया जा सकता है। विद्वान लोग शोक रहित होकर परमात्मा अर्थात ईश्वर का दर्शन करते हैं।

 

(8) भगवान बुद्ध के पाटलिपुत्र संबंधी विचारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर – भगवान बुद्ध ने पाटलीग्राम के बारे में कहा था कि यह गाँव महानगर होगा। लेकिन यह नगर परस्पर लड़ाई आग और बाढ़ के भय से सदैव पीड़ित होता रहेगा। कालांतर में पाटलीग्राम को ही पटना कहा जाने लगा। बुद्ध की कही गई ये बातें सत्य हो रही है।

 

(9) अलस कथा पाठ में धूर्तों की पहचान कैसे हुई ?

उत्तर – आलसी लोगों के सुख को देखकर धूर्त लोग भी छल से भोजन प्राप्त करने लगे। धूर्त लोगों की पहचान के लिए सोए हुए आलसियों के घर में आग लगा दी गई। धूर्त लोग घर में लगी हुई आग को देखकर भाग गए।

 

(10) भारतभूमि पर देवता क्यों जन्म लेना चाहते हैं ?

उत्तर – देवतागन भी भारत भूमि के गीत गाते हैं। वे मनुष्य निश्चय ही धन्य (भाग्यवान) है जो स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने योग्य साधन स्वरूप भारत देश में देवत्व के रूप में जन्म लेते हैं।।

 

(11) वेदांगों का सामान्य परिचय दें।

उत्तर – वेदांग के छः अंग है – (i) शिक्षा (ii) कल्प (iii)व्याकरण (iv) निरुक्त (v) छंद और (vi) ज्योतिष। शिक्षा अंग उच्चारण प्रक्रिया का बोध कराता है, जिसके प्रवर्तक पाणिनी है। कल्प अंग में सूत्रात्मक कर्मकांड ग्रंथ है, जिसके प्रवर्तक बौधायन, भारद्वाज, गौतम वशिष्ठ आदि ऋषि है। निरुक्त वेद अर्थ का बोध कराता है, जिसके प्रवर्तक यास्त है। छंद अंग सूत्रग्रंथ है जिसके प्रवर्तक पिंगल है तथा ज्योतिष अंक के प्रवर्तक लगातार ऋषि है।

 

(12) विश्व में शांति स्थापना कैसे होगी ?

उत्तर – केवल उपदेशों से विश्वशांति नहीं हो सकती। हमें उपदेशों के अनुसार आचरण करना होगा। हम लोग जानते हैं की क्रिया के बिना अर्थात व्यवहार के बिना ज्ञान भार स्वरूप है। वैर से कभी भी वैर शांत नहीं होता। हमें दूसरों के प्रति निर्वेर दया परोपकार सहिष्णुता और मित्रता का भाव रखना होगा तभी विश्वशांति हो सकती है।

 

(13) कर्ण के अनुसार चिरस्थाई क्या है ?

उत्तर – समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है। मजबूत जड़ों वाले वृक्ष धरासही (गिर) हो जाते हैं । एक स्थान से दूसरे स्थान अर्थात नदी तालाब में गया हुआ जल सुख जाता है लेकिन क्या गया हवन तथा दानरूपी पुण्य हमेशा स्थिर रहता है। अर्थात कण के कहने का भाव है कि संसार में अन्य सारी वस्तुएँ नष्ट हो जाती है। सिर्फ दान रूपी पुण्य करती या यश अमिट और अमर होते हैं।

 

(14) मंदाकिनी नदी की शोभा का वर्णन करें।

उत्तर – जब बनारस काल में श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट जाते हैं तब मंदाकिनी की प्राकृतिक सुषमा से बहुत ही प्रभावित हो जाते हैं। ऊंची कछारों वाली इन नदी के रमणीयता को देखकर सीता से कहते हैं कि यह नदी प्रकृतिक उपादानों से संकलित चित्र को आकर्षित कर रही है। रंग- बिरंगी छटावाली यह हंसो द्वारा सुशोभित है एवं इसके निर्मल जल में ऋषिगण स्नान करते हैं।

 

(15) विजयंका को सर्वशुक्ला सरस्वती क्यों कहा गया है ?

उत्तर – सर्वशुक्ला सरस्वती विजयंका को कहा गया है। लौकिक संस्कृत में विजयंका की भूमिका सराहनीय है। उसके पदों की सौष्ठता देखने में बनती है। एक असाधारण लेखिका की पराकाष्ठा से प्रभावित होकर ही दण्डी ने उसे सर्वशुक्ल सरस्वती कहा है। विजयंका श्याम वर्ण की थी किंतु उसकी कृतियाँ ज्योतिर्मय थी। नीलकमल की पंखुड़ियों की तरह विजयंका अपनी रचना में अद्भुत लेखन कला की आभा विखेरती है।

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